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संत नामदेव आरती




जय जयाजी भक्तरायां | जिवलग नामया |
आरती ओवाळिता | चित्त पालटे काया ||धृ.||

जन्मता पांडुरंगे | जिव्हेवरी लिहिले |
शतकोटी अभंग| प्रमाण कवित्व रचिले ||१||

घ्यावया भक्तिसुख | पांडुरंगे अवतार |
धरुनियां तीर्थमिषें | केला जगाचा उद्धार || जय.||२||

प्रत्यक्ष प्रचीती हे | वाळवंट परिस केला |
हारपली विषमता | द्दैतबुद्धी निरसली || जय.||३||

समाधि माहाद्वारी श्रीविठ्ठलचरणी |
आरती ओवाळितो | परिसा कर जोडूनी | जय जयाजी ||४||

संत तुकाराम आरती

आरती तुकारामा | स्वामी सदगुरुधामा |
सच्चिदानंद मूर्ति | पाय दाखवी आम्हां ||१||
आरती तुकारामा ||ध्रु.||

राघवें सागरांत । पाषाण तारियेलें |
तैसें तुकोबाचे । अभंग रक्षियेले ||२||

तुकितां तुलनेसी | ब्रह्मा तुकासी आले |
म्हणोनि रामेश्वरें | चरणी मस्तक ठेविलें ||३||

एकनाथ महाराजांची आरती




आरती एकनाथा | महाराजा समर्था |
त्रिभुवनीं तूंचि थोर | जगद् गुरु जगन्नाथा || धृ.||

एकनाथ नाम सार | वेदशास्त्रांचें गुज |
संसारदु:ख नासे | महामंत्राचें बीज || आरती. ||१||

एकनाथ नाम घेता | सुख वाटलें चित्ता |
अनंत गोपाळची | घणी न पुरे गुण गांता|| आरती. ||२||

पसायदान

आता विश्वात्मके देवे| येणे वाग्यज्ञे तोषावें|
तोषोनी मज द्यावे| पसायदान हे।|

जे खळांची व्यंकटी सांडो| तयां सत्कर्मी रती वाढो|
भूतां परस्परे जडों| मैत्र जीवांचे।|

दुरितांचे तिमीर जाओ| विश्वस्वधर्मसूर्ये पाहो|
जो जे वांछिल तो ते लाहो| प्राणिजात।|

वर्षत सकळ्मंगळी| ईश्वरनिष्ठांची मांदियाळी|
अनवरत भूमंडळी| भेटतु भूतां।|

चला कल्पतरूंचे आरव| चेतना चिंतामणीचे गाव|
बोलते जे अर्णव| पीयुषाचे।|

चंद्रमे जे अलांछन| मार्तंड जे तापहीन|
ते सर्वांही सदा सज्जन| सोयरे होतु।|

किंबहुना सर्व सुखी| पूर्ण होवोनी तिन्ही लोकी|
भजि जो आदिपुरुषी| अखंडित।|

आणि ग्रंथोपजीविये| विशेषीं लोकी इये|
दृष्टादृष्टविजयें| होआवें जी।|

येथ म्हणे श्री ज्ञानेश्वराओ| आ होईल दान पसाओ|
येणे वरें ज्ञानदेओ| सुखिया जाला।|

श्रीमंत योगी

निश्र्चयाचा महामेरू, बहुतजनांसी आधारू, अखंडस्थितीचा निर्धारू, श्रीमंत योगी ।। 
नरपती, हयपती, गजपती। गडपती, भूपती, जळपती। पुरंदर आणि शक्ति पृष्ठभागी।। 
यशवंत, कीर्तीवंत, सामर्थ्यवंत। वरदवंत, पुण्यवंत, नीतीवंत। जाणता राजा ।। 
आचरशील, विचारशील, दानशील। धर्मशील सर्वज्ञपणे सुशील। सकळाठाई ।। 
धीर उदार गंभीर। शूर क्रियेसी तत्पर । सावधपणे नृपवर तुच्छ केले।। 
देवधर्म गोब्राह्मण, करावया संरक्षण।। 
हृदयस्थ झाला नारायण, प्रेरणा केली या भूमंडळाचे ठाई, धर्मरक्षी ऐसा नाही। महाराष्ट्र धर्म राहिला काही, तुम्हा कारणी।। 
कित्येक दृष्ट संहारली। कित्येकासी धाक सुटला । कित्येकाला आश्रयो जाहला । शिवकल्याण राजा। शिवकल्याण राजा।।शिवकल्याण राजा।।।